सोमवार, 3 मई 2010

१. गम ये नहीं कि ग़मों का समंदर मिरे आगे
गम ये कि अब हमें कोई गम नहीं
होता

कब्र में के भी बेअदब निकला
अपनी कौफिन से बड़ा निकला