सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

मेरी पुस्तक "वक्त बेवक्त" प्राप्त  करने  के लिए सम्पर्क करें:

भारतीय राजभाषा विकास संस्थान 

100/2 कृष्ण नगर , देहरादून , 248001

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मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

ग़ज़ल थी,  न काफिया न बहर था बहुत 

उसकी बातों  में मगर असर था बहुत 

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012



मुद्दा--ज़ीस्त, तुम भी न समझ पाओगे
आज आए हो, कल तुम भी चले जाओगे।
कब हँसे थे,कहाँ रोए थे,कहाँ कब क्यूँ
अब जो चाहो भी समझना तो उलझ जाओगे।
रात के बाद सुबह यूँ तो हुआ करती है
तुम न जागे तो कहो कैसे जहॉं पाओगे।
आसमानों से भी ऊपर है मकाँ जिनके
रहमत से भला उनके कहाँ क्‍या पाओगे।
ओस की बूँद से सीखो जीने की अदा
वरना दरिया सा समंदर में समा जाओगे।
बाँध लो आज मुट्ठी में गमो जिल्‍लत
कल तारीख के पन्‍नों में पढ़े जाओगे।
सूखे पत्‍तों की तरह रिश्‍ते भी पुराने होंगे
शाख से टूट के इक रोज बिखर जाओगे।
तेरा मिज़ाज़ भी मौसम की तरह है प्रकाश
        देख के धार हवाओं के बदल जाओगे ।


( मेरी पुस्तक "वक्त बेवक़्त"  से )

बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

मेरी पहली प्रकाशित पुसतक " वक्त बेवक्त" आपकी अदालत में पेश है।

सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

" वक्त बेवक़्त" मेरी पहली प्रकाशित पुस्तक है. 
प्रकाशक  का विवरण दूसरे संदेशों में दे रहा हूँ.