सोमवार, 9 फ़रवरी 2015

अमाँ में फिर से इक सितारा छोड़ जाऊँगा
ज़मीं इक दिन तुझे बेसहारा छोड़ जाऊँगा
लिखी जाए भी फिर से तारीख आदमी की
शहंशाहों को बस इतना इशारा छोड़ जाऊँगा
परीशाँ ही रहे ताज़ीस्त हम, ऐ ज़मीं तेरे लिए
तुम्हारे वास्ते ये ज़िस्म सारा छोड़ जाऊँगा
न जाने किस ज़ुबाँ में बात करना हो हमें उससे
यहीं गायत्री छोड़ जाऊगा, कलमा छोड़ जाऊँगा
हमारा ज़िक्र तक करते नहीं, मिरी ही दास्ताँ में
अब हमसे पूछते क्या हो कहाँ क्या छोड़ जाऊँगा
लिखी जाएँ वो दास्ताने फिर खुलुशे मुहब्बत की
अदीबों के लिए अपना तज़ुर्बा छोड़ जाऊँगा
कभी यूँ ही अचानक फूल सा मिल के किताबों में "प्रकाश"
नम आँखों में कोई गीत प्यारा छोड़ जाऊँगा