सोमवार, 26 नवंबर 2012

दूर उनसे  कभी हुआ हुआ न हुआ 
मुद्दतों वस्ल मगर  हुआ हुआ न हुआ 

जिद है ज़िंदा रहने की , रहेगी 
हवा से राब्ता हुआ हुआ न हुआ 

हो गये कायल हम भी तीरगी के 
किसे गरज दिन हुआ हुआ न हुआ 

लुटा दी  जान जिस्म रूह मगर 
इश्क का क्या हुआ हुआ न हुआ 

सोमवार, 12 नवंबर 2012



दीप


आँधी में बन दीप जला करता हूँ
मैं दधीचि की भाँति जिया करता हूँ
निर्वासित हो अपने ही घर से
स्थगित समय के कोरे कागज पे
लिए निलंबित कलम लहू  का
कुछ ना कुछ लिखता रहता हूँ
 आँधी में बन दीप जला करता हूँ
मैं दधीचि की भाँति जिया करता हूँ
छोड़ सुनहरे  स्वप्न प्रणय के
झिलमिल नयनों के बंधन को
लिए अनुत्तरित प्रश्न नयन में
जल जल कर जगमग करता हूँ
       आँधी में बन दीप जला करता हूँ
मैं दधीचि की भाँति जिया करता हूँ
मेरा श्रमबिन्दु नगर बसाता
मेरा ही लहू इतिहास बनाता
फिर क्यों शहरों की गलियों में
विरमित मैं गलता रहता हूँ
आँधी में बन दीप जला करता हूँ
मैं दधीचि की भाँति जिया करता हूँ
मिट्टी छिन गई, जंगल लुट गए
नदियों का अंचल रीता  हैं
लिए युगों से कंधों पे भारत को
फूटपाथों पर फिरता रह्ता हूँ
आँधी में बन दीप जला करता हूँ
मैं दधीचि की भाँति जिया करता हूँ