खुद से जब आँख मिलाता हूँ तो ग़ज़ल होती है
दिल के हालात बताता हूँ तो ग़ज़ल होती है
शनिवार, 1 सितंबर 2012
"वक्त बेबक्त" मेरी कुछ नाफ़रमान
ग़ज़लों , कविताओं, नज़्मों का एक गुलदस्ता है जिसमें काँटें भी हैं और फूल भी. देहात
की मिट्टी की सोंधी खूशबू भी है तो दिलों में सुलगती विद्रोह की आँच भी.