बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

अंधेरा जब भी ज़हाँ को काला कर गया
वो जलाकर घर अपना उजाला कर गया
गया वो छोड़ यहीं पर, अपने सभी असबाब
जो लाया था वो सबके हवाला कर गया
जिया ऐसे, जैसे कयामत में कोई आफ़ताब
मरा, तो पूरी दुनिया का निवाला कर गया
लोग पागल हो गए, जमा करते रहे ताहयात
वो गँवा के सब सबको धनवाला कर गया
रौशनी ही तकमील थी उसकी "प्रकाश"
वो दीया था जो जलकर उजाला कर गया