सोमवार, 26 नवंबर 2012

दूर उनसे  कभी हुआ हुआ न हुआ 
मुद्दतों वस्ल मगर  हुआ हुआ न हुआ 

जिद है ज़िंदा रहने की , रहेगी 
हवा से राब्ता हुआ हुआ न हुआ 

हो गये कायल हम भी तीरगी के 
किसे गरज दिन हुआ हुआ न हुआ 

लुटा दी  जान जिस्म रूह मगर 
इश्क का क्या हुआ हुआ न हुआ 

सोमवार, 12 नवंबर 2012



दीप


आँधी में बन दीप जला करता हूँ
मैं दधीचि की भाँति जिया करता हूँ
निर्वासित हो अपने ही घर से
स्थगित समय के कोरे कागज पे
लिए निलंबित कलम लहू  का
कुछ ना कुछ लिखता रहता हूँ
 आँधी में बन दीप जला करता हूँ
मैं दधीचि की भाँति जिया करता हूँ
छोड़ सुनहरे  स्वप्न प्रणय के
झिलमिल नयनों के बंधन को
लिए अनुत्तरित प्रश्न नयन में
जल जल कर जगमग करता हूँ
       आँधी में बन दीप जला करता हूँ
मैं दधीचि की भाँति जिया करता हूँ
मेरा श्रमबिन्दु नगर बसाता
मेरा ही लहू इतिहास बनाता
फिर क्यों शहरों की गलियों में
विरमित मैं गलता रहता हूँ
आँधी में बन दीप जला करता हूँ
मैं दधीचि की भाँति जिया करता हूँ
मिट्टी छिन गई, जंगल लुट गए
नदियों का अंचल रीता  हैं
लिए युगों से कंधों पे भारत को
फूटपाथों पर फिरता रह्ता हूँ
आँधी में बन दीप जला करता हूँ
मैं दधीचि की भाँति जिया करता हूँ

सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

मेरी पुस्तक "वक्त बेवक्त" प्राप्त  करने  के लिए सम्पर्क करें:

भारतीय राजभाषा विकास संस्थान 

100/2 कृष्ण नगर , देहरादून , 248001

दूरभाष  0135-2753845

 

 

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

ग़ज़ल थी,  न काफिया न बहर था बहुत 

उसकी बातों  में मगर असर था बहुत 

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012



मुद्दा--ज़ीस्त, तुम भी न समझ पाओगे
आज आए हो, कल तुम भी चले जाओगे।
कब हँसे थे,कहाँ रोए थे,कहाँ कब क्यूँ
अब जो चाहो भी समझना तो उलझ जाओगे।
रात के बाद सुबह यूँ तो हुआ करती है
तुम न जागे तो कहो कैसे जहॉं पाओगे।
आसमानों से भी ऊपर है मकाँ जिनके
रहमत से भला उनके कहाँ क्‍या पाओगे।
ओस की बूँद से सीखो जीने की अदा
वरना दरिया सा समंदर में समा जाओगे।
बाँध लो आज मुट्ठी में गमो जिल्‍लत
कल तारीख के पन्‍नों में पढ़े जाओगे।
सूखे पत्‍तों की तरह रिश्‍ते भी पुराने होंगे
शाख से टूट के इक रोज बिखर जाओगे।
तेरा मिज़ाज़ भी मौसम की तरह है प्रकाश
        देख के धार हवाओं के बदल जाओगे ।


( मेरी पुस्तक "वक्त बेवक़्त"  से )

बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

मेरी पहली प्रकाशित पुसतक " वक्त बेवक्त" आपकी अदालत में पेश है।

सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

" वक्त बेवक़्त" मेरी पहली प्रकाशित पुस्तक है. 
प्रकाशक  का विवरण दूसरे संदेशों में दे रहा हूँ.



शनिवार, 1 सितंबर 2012

"वक्त बेबक्त" मेरी कुछ नाफ़रमान ग़ज़लों , कविताओं, नज़्मों का एक गुलदस्ता है जिसमें काँटें भी हैं और फूल भी. देहात की मिट्टी की सोंधी खूशबू भी है तो दिलों में सुलगती विद्रोह की आँच भी.

वक्त बेवक्त