बुधवार, 24 दिसंबर 2014

आज की ताजा ग़ज़ल
ग़म छुपा आँख में बस हँसा कीजिए
ज़िंदगी है किताब बस पढ़ा कीजिए

कब तलक अश्क बन के रुलाता रहे
ग़म गले से लगा मुस्कुरा दीजिए

दूर मंजिल नहीं बस यहीं पास है
बायकीं दो कदम तो चला कीजिए

कल कहाँ कौन हो ये किसे है खबर
आज का दिन तो है बस जिया कीजिए

मर्ज़े इश्क हुआ तो हुआ बस हुआ
अब दवा लीजिए या दुआ लीजिए

जाने मंज़िल कभी यूँ मिले ना मिले
आप तो बस सफ़र का मज़ा लीजिए

सोमवार, 3 नवंबर 2014

ज़मीं चाही, आसमान लाए हो 
दीया माँगा, आफ़ताब लाए हो
मुझे टूटे सितारों की आदत हैं,
मेरे लिए क्यूँ माहताब लाए हो।

बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

अंधेरा जब भी ज़हाँ को काला कर गया
वो जलाकर घर अपना उजाला कर गया
गया वो छोड़ यहीं पर, अपने सभी असबाब
जो लाया था वो सबके हवाला कर गया
जिया ऐसे, जैसे कयामत में कोई आफ़ताब
मरा, तो पूरी दुनिया का निवाला कर गया
लोग पागल हो गए, जमा करते रहे ताहयात
वो गँवा के सब सबको धनवाला कर गया
रौशनी ही तकमील थी उसकी "प्रकाश"
वो दीया था जो जलकर उजाला कर गया

शनिवार, 23 अगस्त 2014

कहीं  दिन निपट  गया कहीं रात कट  गई  है 

बस  यूँ  ही  धीरे  धीरे ये हयात कट  गई है

शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

जाने  कहाँ  चले  जाते होंगे  वो पल जो कभी इतने पास होते हैं  जैसे हम और हमारी साँस  हो.

रविवार, 22 जून 2014

इश्क में हम हदों तक भी पहुँचे नहीं अब तक 
जाने क्यों हद से गुजर जाने की बात करते हैं

शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

मेरे हाथों में तेरे गिरहबान होंगे
जब कभी अश्क बाज़ुबान होंगे

मोह्ताज हम नहीं तेरे ऐ सूरज
रौशनी के और भी इंतजाम होंगे

आईने कितने बदलोगे "प्रकाश"
चेहरे से कम कहाँ निशान होंगे